१. श्राद्धं नामादनीयस्य तत्स्थानीयस्य वा द्रव्यस्य प्रतोद्देशेन श्रद्धया त्याग: । याज्ञवल्क्य १,२१७ मिताक्षरा ।
अर्थात् – पितृओके उद्देश्य से ( उन के कल्याणार्थ) उनको श्रद्धा पूर्वक भोजन वस्तु का दान या उससे संबंधित द्रव्य दान या द्रव्य त्याग उसे श्राद्ध कहते हैं ।
२. देशे काले च पात्रे च श्रद्धया विधिना च तत् ।
पितॄनुद्दिश्य विप्रेभ्यो दत्तं श्राद्धमुदाहृतम्।। ब्रह्मपुराण
अर्थात्-पितृकर्म में यथा योग्य स्थान, यथा काल, यथा पात्र एवं विधी पूर्वक श्रद्धा से ब्राह्मण को जो कुछ देते हैं उसे श्राद्ध कहते हैं ।
आज से महालय श्राद्ध पक्ष का आरंभ ।
प्रतिपदा (पड़वा नु,पहेलु) श्राद्ध।
सु प्रभातम्।
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