चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानी चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की पहली तिथि, बढ़ते हुए चन्द्र के साथ नए वर्ष का आगमन। 1 अरब 95 करोड़ 58 लाख 85 हज़ार 123 वर्ष पहले चैत्र मास के शुक्लपक्ष में सूर्योदय के समय ब्रह्माजी ने जगत की रचना की थी।१
आरम्भ है सृष्टि का यह पावन प्रतिपदा।
महाराज इक्ष्वाकु का राज्यारोहण है यह प्रतिपदा।
सतयुग व प्रभव आदि 60 संवत्सरों का आरम्भ है चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा।२
चन्द्रमा और सूर्य के वर्ष का आरम्भ है मधुमास की धवल प्रतिपदा।३
इस चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को सूर्योदय में जो वार होता है उसी का अधीश वर्ष का राजा होता है।४
लंका नगरी में मधुमास (चैत्र) के सितपक्ष के आरम्भ होने पर सूर्योदय के समय जब रविवार था तब दिन, मास, पर्व, युगादि व युगपत आदि की प्रवृत्ति हुई थी।५
सम्राट विक्रमादित्य का शासनग्रहणदिवस है चैत्र शुक्ल प्रतिपदा। 180 देशों के अधीश्वर शकारि सम्राट विक्रमादित्य जिन्होंने रोमराज जूलियस सीजर को हराया ने जब चैत्र का शुक्लपक्ष था, प्रतिपदा तिथि और सूर्य चन्द्रमा प्रथम अश्विनी नक्षत्र में थे तब विक्रम संवत् चलाया। नश्वर पत्थरों में गढ़े शिलालेख इतिहास की नदी की रगड़ खाकर सपाट हो जाते हैं पर इतिहास का सत्य सनातन समाज की शिराओं में उत्कीर्ण रह जाता है।
सनातन धर्म के सभी प्राचीन ग्रन्थों में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही वर्ष का आरम्भ माना गया है। विक्रम संवत् से दो अरब वर्ष पहले से ही यह प्रथा रही है जिसे सम्राट विक्रमादित्य द्वारा चलाए संवत् में भी यथावत अपनाया गया।
सूर्य जब 12 राशियों में पहली मेष राशि में प्रवेश करता है उससे निकटतम वह पूर्णिमा जिसमें चन्द्रमा चित्रा नक्षत्र में या उसके बगल में हो वह चैत्र मास का अन्त होता है। इस चैत्र मास का कृष्णपक्ष पिछले वर्ष में और शुक्लपक्ष वर्तमान वर्ष में माना जाता है। ब्रह्माण्ड पुराण में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नवीन संवत्सर की पूजा करने का विधान दिया गया है। हेमाद्रि, निर्णयसिन्धु, धर्मसिन्धु आदि सभी निबंध ग्रन्थों में इस प्रतिपदा का यशोगान है।
इसलिए पूरे देश के सभी विद्वानों, ज्योतिषाचार्यों, व जन जन द्वारा हज़ारों वर्ष से चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नव वर्ष मनाया जाता है, संवत्सर पूजन, पंचांग पूजन, ब्रह्माजी का पूजन किया जाता है, और नए वर्ष के राजा मंत्री आदि का भविष्यफल सुना जाता है। इस पावन दिन की शोभा वसन्त की नवरात्रि उसी तरह बढ़ा देती है जैसे इन्द्र के बगीचे की शोभा कल्पवृक्ष बढ़ा देता है। सभी तरफ सात्विक भावनाओं का संचार हो जाता है, हवाओं में वसन्त के मोगरे की गन्ध और घरों में देवी के धूप की गन्ध समा जाती है।
◆ क्या है गत सम्वत् का चैत्र कृष्णपक्ष ?
हर नवीनता व प्राचीनता के मध्य एक सन्ध्या होती है। वही सन्ध्या काल है चैत्रकृष्णपक्ष। अतीत से अनागत का द्वार है चैत्र कृष्णपक्ष। सम्वत्सर का विश्राम स्थल है चैत्रकृष्णपक्ष। दग्ध हुए संवत्सर का धूम है चैत्र कृष्णपक्ष। सम्वत्सर होलिका के साथ दहन हो जाता है अतः होलिका माता से प्रार्थना की जाती है कि इस सम्वत्सर में जो जो पाप हमसे हो गए हैं उन्हें भी भस्म कर दीजिए। दग्ध हुआ सम्वत्सर ही सम्वत्सर यज्ञ की पूर्णाहुति के पश्चात् बचे हुए घृत सामग्री के अंशों से समिधा से बने कोयले पर जलता हुआ शेष रह जाता है चैत्रकृष्णपक्ष के रूप में। सम्वत्सर यज्ञ की पूर्णाहुति के बाद एकान्त में दहकता कुण्ड है चैत्र कृष्णपक्ष। इस सम्वत्सर अग्नि का सोमभाग वैसे ही चुकता है जैसे हर घटती कला के साथ कृष्णपक्ष का चन्द्रमा चुकता है।
अनुभव में भी आता है इस समय में एक विचित्र प्रकार की नीरसता नैराश्य संक्रमण का काल रहता है, इस पक्ष में मनुष्य आदि सभी नवीन विचार उत्साह से हीन से रहते हैं आलस्य का प्रकोप रहता है। क्या इस अवकाश को होली के रंगों से भरा गया? बन्द हुए बहीखाते अलमारी में जाने का तो नए बहीखाते मेज पर आने का इंतज़ार करते हैं। पर जैसे ही चैत्र शुक्लपक्ष नव संवत्सर आता है और सम्वत्सर की अग्नि प्रज्जवलित होती है, पुनःनवजीवन नवउत्सव नव आशा का संचार होकर संसार उद्यमी हो जाता है। तब शुक्लपक्ष में संसार वैसे ही गतिमान होता जाता है जैसे चन्द्रमा कला पर कला चढ़ता जाता है। वर्ष आरम्भ होते ही कृष्णपक्ष का घटाव हिन्दू मनीषा को अभीष्ट नहीं है।
जैसे ही चैत्र की अमावस्या का अंतिम विपल चुकता है चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से वर्ष कुण्डली का निर्माण हो जाता है और अगले सम्वत्सर का फल नियत हो जाता है। यह प्रतिपदा जब सूर्योदय में होती है वही वार वर्ष का राजा बनता है। सूर्य संक्रान्तियों के वार ग्रह उस राजा के मन्त्रिमण्डल में कार्य करते हैं।
अतः चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा सनातन धर्म का महान उत्सव है, भगवती के आगमन का अवसर है, भगवान् श्रीरामचन्द्र जी के जन्मदिन के आगमन का सन्देश है, प्रकृति की मुस्कान है, हिन्दू का अभिमान है।
सूर्य और चन्द्र रूप अश्विनीकुमारों का एकत्व है।
सृष्टि रचयिता प्रजापति ब्रह्मा का महत्त्व है।
अंग्रेजी अवैज्ञानिकता के दम्भ को ठोकर मारता विज्ञान है।
प्रकृति के हर तत्त्व का सम्मान है।
पूर्वजों की धरोहर, सनातन का गुलमोहर है।
पर्वों का सरोवर, जगती का नव कलेवर है।
है नदी की कल कल सा प्रतिवर्ष रुकता घाट पर।
लाता नया सन्देश है गत संवत्सर समाप्त कर।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा संवत्सर गतिप्रदा ।
नवीन वर्ष सर्वदा सर्वजन सुखप्रदा ।
हिन्दूराष्ट्र में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा ही नववर्ष की तिथि रहेगी। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नववर्ष अवश्य मनाएं।
१. चैत्रे मासि जगद्ब्रह्मा ससर्ज प्रथमेsहनि।
शुक्लपक्षे समग्रम् तु तदा सूर्योदये सति॥
(ब्रह्मपुराण, नारदपुराण)
२. कृते च प्रभवे चैत्रे प्रतिपच्छुक्लपक्षगा।
रेवत्यां योगविष्कम्भे दिवा द्वादशनाडिकाः॥
(स्मृतिकौस्तुभ)
३. चान्द्रोsब्दो मधुशुक्लप्रतिपदारम्भः।
(दीपिका)
४. चैत्रे सितप्रतिपदि यो वारोsर्कोदये स वर्षेशः।
(ज्योतिर्निबन्ध)
५. लंका नगर्यामुदयाच्च भानो: तस्यैव वारे प्रथमं बभूव ।
मधो: सितादे: दिन मास पर्व युगादिकानां युगपत प्रवृत्ति: ।।
(सिद्धान्तशिरोमणि)
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