अहि-रिपु-पति-कांता तात-संपूज्य-कांता ।
हर-तनय-निहन्तृ-प्राणदातृ-ध्वजस्य।
सखि-सुत-सुत-कांता तात-संपूज्य-कांता
पितृशिरसि वहन्ति जाह्नवी मां पुनातु॥
भावार्थ :- अहि-सांप उसका शत्रु गरुड, उनके स्वामी विष्णु, उनकी पत्नी लक्ष्मी उनके पिता समुद्र, उनकी पूजा करने वाले राम उनकी पत्नी सीता उनका हरण करने वाला रावण, उनका पुत्र इन्द्रजित उसके द्वारा घायल हुआ लक्ष्मण, उनको प्राण देने वाले हनुमान वो जिसकी ध्वजा पे बैठे वो अर्जुन उनके मित्र कृष्ण उनके पुत्र प्रद्युम्न उनके पुत्र अनिरुद्ध उनकी पत्नी उषा उनके पिता बाणासुर उसने जिनकी पूजा की वो भगवान शिव उनकी पत्नी मां पार्वती उनके पिता हिमालय और उस हिमालय से बहनें वाली जाह्नवी अर्थात् गंगाजी मुझे पवित्र करें।
सांप से शुरू हुआ श्लोक गंगाजी को छू गया ।
संस्कृत (sanskrit) की ऐसी विशेषता है और ऐसा आनंद संस्कृत (sanskrit) में है। इसीलिए हम सभी संस्कृत (sanskrit) पढ़ते है, और सदैव पढ़ते ही रहना चाहिए…
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